तेलुगु के लिए यह कार्य गिडुगु वेंकट राममूर्ति ने ग्रांथिक भाषा के स्थान पर व्यावहारिक भाषा को लाकर तथा उसे शिक्षा का माध्यम बनवाकर किया तो हिंदी के लिए आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने खड़ी बोली का मानकी कारण करके उसे काव्य के साथ गद्य की भी भाषा बनवाकर किया.